दिल्ली में क्या होगा उप राज्यपाल का अगला कदम
आदिति फडणीस
दिल्ली सरकार को 25 मई के पहले बर्खास्त किया जाएगा या उसके बाद? फिलहाल यही इकलौता प्रश्न है। दिल्ली में उसी दिन लोक सभा चुनाव हैं। उसके पहले कोई कदम उठाने पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिल्ली की सीटें जीतने की संभावना पर असर पड़ सकता है। इसके अलावा जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के बीच तानों की जंग जितनी लंबी चलेगी, उतने लंबे समय तक केजरीवाल को यह साबित करना होगा कि वह एक दमनकारी सरकार के राजनीतिक बंदी हैं, न कि एक भ्रष्ट व्यक्ति जैसा कि भाजपा दावा कर रही है।
हर दूसरे दिन जेल में बंद मुख्यमंत्री के साथी बाहर यह घोषणा करते हैं कि उन्होंने जेल से क्या ‘निर्देश’ दिया है या क्या ‘निर्णय’ लिया है। इसकी प्रतिक्रिया में उप राज्यपाल ने जोर देकर कहा कि दिल्ली की सरकार जेल से नहीं चलेगी। हमें एक बात समझ लेनी चाहिए कि अनुच्छेद 239 एए और एबी के तहत दिल्ली के उप राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह भारत के राष्ट्रपति को सूचित करें कि ऐसी स्थिति बन गई है जहां राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का प्रशासन संविधान सम्मत तरीके से से नहीं चलाया जा सकता है और वह सरकार को बर्खास्त करने की अनुशंसा कर सकते हैं।
उन्हें इसमें इतना वक्त क्यों लग रहा है? लोक सभा में दिल्ली से आम आदमी पार्टी (आप) का कोई सांसद नहीं है। वहां सभी सात सांसद भाजपा के हैं। उप राज्यपाल के प्रतिनिधित्व वाली केंद्र सरकार का वास्तविक लक्ष्य है राज्य सरकार की विश्वसनीयता को प्रभावित करना। आमतौर पर यह काम पार्टी की प्रदेश इकाई का होता है। इस मामले में भाजपा की दिल्ली इकाई इतनी निष्प्रभावी है कि उसे इस काम के लिए संवैधानिक मुखिया की मदद लेनी पड़ी जबकि यह काम निर्वाचित नेताओं का था।
विनय कुमार सक्सेना को 2022 में दिल्ली का उप राज्यपाल बनाया गया था। इससे पहले 2015 में उन्हें खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) का अध्यक्ष बनाया गया था। मूल रूप से कानपुर के रहने वाले सक्सेना ने अपना करियर राजस्थान की एक निजी कंपनी में सहायक अधिकारी के रूप में शुरू किया था। सन 1995 में वह धोलेरा बंदरगाह परियोजना के महा प्रबंधक बनकर गुजरात चले गए जिसे अदाणी पोर्ट्स लिमिटेड और जे के व्हाइट सीमेंट द्वारा विकसित किया जा रहा था। उन्हें न केवल सीईओ बनाया गया बल्कि परियोजना का निदेशक भी बना दिया गया।
वर्ष 2000 से आज तक सक्सेना को अगर किसी से डर लगा है तो वह हैं मेधा पाटकर। सन 1990 के दशक में जब सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने के विरुद्ध बाबा आमटे और मेधा पाटकर के नेतृत्व वाला नर्मदा बचाओ आंदोलन चरम पर था उस समय सक्सेना ने एक स्वयंसेवी संगठन की स्थापना की जिसका नाम था नैशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज (एनसीसीएल)। उन्होंने आलेख प्रकाशित कराने आरंभ किए और पाटकर की गतिविधियों के विरुद्ध सशुल्क विज्ञापन देने शुरू किए। उन्होंने आरोप लगाया कि वह राष्ट्र विरोधी हैं तथा उन्हें संदिग्ध विदेशी माध्यमों से पैसे मिल रहे थे। पाटकर की मांगें एकदम साधारण थीं: बांध की ऊंचाई बढ़ाने से निश्चित तौर गुजरात और राजस्थान के कई जल संकट वाले इलाकों की प्यास बुझाने में मदद मिलती लेकिन इससे मध्य प्रदेश के हजारों लाखों लोगों को अपने घरों से उजडऩा पड़ता।
बांध की ऊंचाई बढ़ाने तथा जल भराव वाले इलाके का विस्तार करने से पहले इन लोगों का पुनर्वास करना जरूरी था। इन दलीलों के सही गलत होने से परे नर्मदा बचाओ आंदोलन एक समय गुजरात में बदनाम हो गया था। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने अपने रुख के समर्थन में हरसंभव सहायता जुटाने की कोशिश की। राज्य सरकार की ओर से सक्सेना ने बीड़ा उठाया और पाटकर के खिलाफ मुकदमा लड़ा। बदले में पाटकर ने उनके खिलाफ अवमानना के मामले दायर किए जो अभी भी चल रहे हैं। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रिय काम के लिए सक्सेना का समर्थन यहीं नहीं रुका। उनके स्वयंसेवी संगठन ने ही चिंतक आशिष नंदी के खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी। उनका आरोप था कि 2007 के विधानसभा चुनाव के बाद नंदी ने एक लेख लिखा था जिसने राज्य की ‘छवि खराब’ की थी और ‘हिंदुओं तथा मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दुर्भावना’ बढ़ाई।
प्रतिवाद में नंदी ने कहा कि यह प्राथमिकी दुर्भावना के साथ दर्ज कराई गई है और उन्हें उनके विचार व्यक्त करने के लिए दंडित करने की कोशिश की जा रही है। गुजरात पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने गई और आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने 2011 में नंदी को राहत प्रदान की।
सक्सेना के कार्यकाल में ही केवीआईसी को कॉर्पोरेट में बदला गया और उसने मुनाफा कमाया। परंतु यह आदेश भी था कि उसके कर्मचारी आजीवन खादी के बने कपड़े पहनेंगे। सक्सेना के नेतृत्व में केवीआईसी ने प्रमुख कपड़ा ब्रांड मसलन रेमंड्स और अरविंद मिल्स के साथ अनुबंध किए ताकि खादी की मार्केटिंग की जा सके।
2017 में पहली बार फैब इंडिया जैसी कंपनियों और एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी वेबसाइटों को ट्रेडमार्क के उल्लंघन का कानूनी नोटिस दिया गया क्योंकि ये कंपनियां और प्लेटफॉर्म जिन कपड़ों को खादी के नाम से बेच रहे थे वे खादी नहीं थे और ‘उन पर केवीआईसी द्वारा जारी टैग या लेबल नहीं लगा था।’ मुकदमों का इतना अनुभव होने के बाद भी वह कौन सी बात है जो सक्सेना को केजरीवाल को पद से हटाने के लिए कानून का इस्तेमाल करने से रोक रही है? शायद इसका जवाब 25 मई के बाद मिलेगा।