भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन का क्या संदेश?
अजीत द्विवेदी
लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय अधिवेशन भाजपा ने किया, जिसकी चुनावी तैयारियां राउंड द क्लॉक यानी 24 घंटे, सातों दिन और 12 महीने चलती रहती है। कायदे से मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को इस तरह का अधवेशन करना चाहिए था और साथ ही नए बने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की साझा बैठक भी करनी चाहिए थी। लेकिन कांग्रेस के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा कर रहे हैं और बाकी सहयोगी पार्टियों के साथ कांग्रेस का इतना भी तालमेल नहीं बन पाया है कि विपक्ष के नेता उनकी यात्रा में शामिल हों। सो, मोटे तौर पर विपक्ष की तैयारियां भगवान भरोसे हैं और चुनाव का नैरेटिव भी हालातों पर निर्भर है। ऐसा लग रहा है कि उसे अपनी ओर से चुनाव का कोई नैरेटिव भी सेट नहीं करना है। उसे सिर्फ भाजपा के तय किए नैरेटिव पर प्रतिक्रिया देनी है। तभी यह जानना अहम है कि भाजपा ने क्या नैरेटिव सेट किया है या दो दिन के राष्ट्रीय अधिवेशन से देश के मतदाताओं और भाजपा के कार्यकर्ताओं को क्या संदेश दिया है। दो दिन के सम्मेलन का सार पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के भाषण से मिलता है, जिसे कई पहलुओं से समझा जा सकता है।
पहला, राष्ट्रीय अधिवेशन में राममंदिर पर प्रस्ताव मंजूर किया गया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की गई। इस प्रस्ताव में कहा गया कि राममंदिर का निर्माण ‘भारत की आध्यात्मिक चेतना का पुनर्जागरण’ है और यह ‘एक हजार साल के लिए राम राज्य की स्थापना का प्रस्थान बिंदु’ है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भाजपा के चुनाव अभियान में अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के उद्घाटन और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का क्या महत्व है। यह सिर्फ एक मंदिर का मामला नहीं है। भाजपा ने इसे हिंदू पुनरूत्थान से जोड़ा है, जिसका प्रतीक चेहरा नरेंद्र मोदी हैं। अयोध्या का मामला या यह नैरेटिव सिर्फ अयोध्या तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका विस्तार व्यापक है। अयोध्या के बाद प्रधानमंत्री ने मां कामाख्या कॉरिडोर का शिलान्यास किया, अबु धाबी में पहले हिंदू मंदिर का उद्घाटन किया और कल्कि धाम मंदिर का शिलान्यास भी किया। पिछले दो महीने के घटनाक्रम का संदेश दूर तक जा रहा है। भाजपा नेता भले हिंदू पुनर्जारगण, पुनरुत्थान या राम राज्य कह रहे हैं, लेकिन व्यापक हिंदू समाज इसे हिंदू राष्ट्र सुन रहा है। उसको लग रहा है कि एक हजार साल के हिंदू राष्ट्र की बुनियाद पड़ रही है और नरेंद्र मोदी इसका माध्यम बन रहे हैं।
दूसरा, इतिहास की ग्रंथियों का मुद्दा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा कि दशकों से जो काम लंबित थे वो काम उनके कार्यकाल में पूरे हुए हैं। उन्होंने अयोध्या में राममंदिर निर्माण से लेकर जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म करने, नागरिकता कानून में संशोधन करने, नया संसद भवन बनाने, तीन तलाक पर कानून बनाने, राजपथ को कर्तव्य पथ करने आदि का जिक्र किया। इन्हें सिर्फ सरकार की उपलब्धियों का बखान मानने की गलती नहीं करना चाहिए। ये मुद्दे सामान्य उपलब्धियों की तरह पेश भी नहीं किए गए हैं। ये सब या तो धर्म से जुड़े हैं या राष्ट्रवाद से जुड़े हैं। इनके जरिए भी भाजपा ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की मजबूती का नैरेटिव बनाया है। राममंदिर, नागरिकता कानून, तीन तलाक पर कानून तो सीधे तौर पर धर्म से जुड़े मुद्दे हैं। तो नए संसद भवन का निर्माण गुलामी की मानसिकता से मुक्त होने के नैरेटिव का हिस्सा है, जिसके साथ और भी कई चीजें जुड़ी हैं, जैसे अंग्रेजों के जमाने के कानूनों को बदलना।
तीसरा, अनुच्छेद 370 खत्म करने के फैसले को अब जाकर राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बनाया गया है। सरकार ने अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 खत्म करने, जम्मू कश्मीर का विभाजन करने और उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाने का फैसला किया था। उसके बाद से इस पर लगभग खामोशी थी। उलटे यह सवाल उठ रहा था कि अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद जम्मू कश्मीर में क्या बदला है? क्या कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास हो रहा है? इस मसले पर करीब साढ़े चार साल की चुप्पी के बाद अब यह बड़ा चुनावी मुद्दा बन रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसके भावनात्मक इस्तेमाल का रोडमैप बनाया है। उन्होंने अनुच्छेद 370 को लोकसभा की 370 सीटों से जोड़ दिया है। वे कह रहे हैं कि उनकी सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाया तो देश के लोग भाजपा को 370 सीटों का टीका देंगे। ध्यान रहे प्रधानमंत्री मोदी भले अपने मुंह से नहीं कहें लेकिन उनकी पार्टी ने यह नैरेटिव बनाया है कि कश्मीर को आजादी 2019 में मिली है और तभी वह भारत का हिस्सा बना है। याद करें भाजपा के पुराने नारे को- जहां हुए बलिदान मुखर्जी वह कश्मीर हमारा है। भाजपा ने यह स्थापित किया है कि कश्मीर पहले हमारा नहीं था। वह 2019 में हमारा हुआ और इसलिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान को याद करते हुए देश के लोगों को 370 सीटें भाजपा को देनी चाहिए। इसके जरिए 370 सीट और 50 फीसदी से ज्यादा वोट का लक्ष्य तय हुआ।
चौथा, विपक्ष को देश विरोधी, भ्रष्ट और परिवारवादी बताने के पुराने नैरेटिव को फिर से राष्ट्रीय अधिवेशन में जोर-शोर से उठाया गया और देश भर से आए करीब साढ़े 11 हजार पार्टी पदाधिकारियों और नेताओं को इसे जनता के बीच ले जाने का संदेश दिया गया। प्रधानमंत्री ने स्वंय कांग्रेस पर हमले की कमान संभाली और कहा कि कांग्रेस ने हमेशा देश का विरोध किया है। सेना की उपलब्धियों पर सवाल उठाए हैं। राफेल की खरीद तक में रोड़ अटकाए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस देश को बांटने और समाज को तोडऩे वाली पार्टी है। उन्होंने सीधे तौर पर उत्तर और दक्षिण के विभाजन के नैरेटिव या जाति गणना के मुद्दे को नहीं उठाया लेकिन कांग्रेस को तोडऩे और बांटने वाली पार्टी बता कर उसकी ओर इशारा किया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि विपक्ष में सभी परिवारवादी पार्टियां हैं। उन्होंने साथ ही कहा कि मोदी के तीसरे कार्यकाल में परिवारवादी पार्टियों का अंत हो जाएगा। यह अपने आप में बहुत मजबूत नैरेटिव है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने इन शब्दों में आगे बढ़ाया कि ‘कांग्रेस सिर्फ एक परिवार के लिए है’।
पांचवां और सबसे बड़ा संदेश मोदी के नेतृत्व, देश के लिए उनकी अनिवार्यता और सत्ता में लौटने की अवश्यंभाविता का है। दो दिन के अधिवेशन में पूरी पार्टी ने मिल कर यह स्थापित किया कि मोदी इकलौते नेता हैं और भाजपा में या भाजपा से बाहर कोई भी नेता उनके मुकाबले का नहीं है। वे सर्वोच्च हैं और सर्वमान्य हैं। मोदी ने खुद अनेक बार अपना नाम लिया, जो हैरान करने वाला था। मनोवैज्ञानिक इसे आत्मविश्वास की कमी बताते हैं तो विपक्ष अति आत्मविश्वास और कुछ हद तक अहंकार मान रहा है। फिर यह बताया गया कि वे देश के लिए क्यों अनिवार्य हैं। यह बताने का प्रयास तो बहुत पहले से चल रहा था लेकिन दो दिन के सम्मेलन में कई तरह से यह बताया गया कि देश अपना पुराना गौरव हासिल करने की ओर बढ़ रहा है तो वह सिर्फ मोदी के कारण हो रहा है। वे हिंदू गौरव लौटाने के लिए काम कर रहे हैं। भारत को फिर से महान बनाने के लिए काम कर रहे हैं और दुनिया भी मानने लगी है कि भारत महानता की ओर बढ़ चला है। इसी के साथ उनकी सत्ता में वापसी की अवश्यंभाविता का नैरेटिव भी बनाया गया। वैसे यह भाजपा का पुराना नारा रहा है कि ‘आएगा तो मोदी ही’। इसे साढ़े 11 हजार प्रतिनिधियों के सामने बताने के लिए मोदी ने कहा कि उन्हें दुनिया के देशों की ओर से जुलाई-अगस्त के न्योते मिल रहे हैं, जिसका मतलब है कि दुनिया भी मान रही है कि ‘आएगा तो मोदी ही’ और अब तो विपक्षी पार्टियां भी मानने लगी हैं कि सत्तारुढ़ गठबंधन चार सौ सीट जीतेगा। हालांकि ये दोनों बातें अर्धसत्य की तरह हैं। लेकिन वह अलग विमर्श का मसला है। कुल मिला कर दो दिन की बैठक से देश को यह बताया गया कि मोदी के मुकाबले कोई नहीं है, वे देश की जरुरत हैं और उनका सत्ता में वापस लौटना तय है। वे लौटेंगे तभी भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा और 2047 तक विकसित बन पाएगा।