दवा उद्योग का संकट
पिछले दस महीनों में भारतीय कंपनियों की दवाओं के खिलाफ डब्लूएचओ की यह पांचवीं चेतावनी है। पिछले कुछ महीनों से भारत का दवा उद्योग अंतरराष्ट्रीय विवादों से जूझ रहा है, क्योंकि कई देशों से भारतीय दवाओं से लोगों की जान जाने की खबरें आ चुकी हैं। एक समय भारत में खासकर जेनेरिक दवाओं का उद्योग इतनी तेजी से विकसित हुआ कि भारत को गरीब देशों के लोगों का जीवन-रक्षक बताया जाने लगा। लेकिन भारतीय दवाएं अगर दुनिया भर में इस्तेमाल की जाने लगीं, तो इसका कारण सिर्फ उनका सस्ता होना नहीं था। बल्कि सस्ता होने के साथ भारतीय दवाओं ने सुरक्षित और प्रभावी होने की अपनी साख भी बनाई थी।
आज यही साख खतरे में है। विदेशों में एक के बाद दूसरी दवा को असुरक्षित घोषित करने की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। अब ताजा खबर है कि विश्?व स्वास्थ्य संगठन का एलान है। संगठन ने कहा है कि पिछले महीने इराक में पाया गया दूषित सामान्य कोल्ड सिरप तमिलनाडु स्थित एक भारतीय दवा कंपनी द्वारा निर्मित किया गया था। दूषित बैच का निर्माण फोर्ट्स (इंडिया) लेबोरेटरीज प्राइवेट लिमिटेड में हुआ था। डैबिलाइफ फार्मा प्राइवेट लिमिटेड के लिए बनी ‘कोल्ड आउट’ नाम की सर्दी की दवा है, जिसकी इराक में बिक्री होती है। डब्लूएचओ के मुताबिक इस दवा के सैंपल में डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल की मात्रा मानक से काफी ज्यादा थी।
संगठन ने अपने बयान में कहा है- ‘यह उत्पाद घटिया और असुरक्षित है। इसका इस्तेमाल खासकर बच्चों को गंभीर नुकसान या उनकी मौत का कारण बन सकता है।’ पिछले दस महीनों में भारतीय कंपनियों की दवाओं के खिलाफ विश्व स्वास्थ्य संगठन की यह पांचवीं चेतावनी है। पिछले साल गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में कम से कम 89 बच्चों की मौत के लिए भारतीय कंपनी मेडेन फार्मास्यूटिकल्स के कफ सिरप को जिम्मेदार ठहराया गया था। इसके अलावा भारतीय अधिकारियों को राइमन लैब्स द्वारा निर्मित कफ सिरप में भी विषाक्त पदार्थ मिले, जिसे कैमरून में बच्चों की मौत के लिए दोषी ठहराया गया था। गौरतलब है कि भारत में दवा निर्माण का 41 अरब डॉलर का उद्योग है। यह दुनिया के सबसे बड़े दवा निर्माताओं में से है। लेकिन पिछले कुछ महीनों से भारत का दवा उद्योग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादों से जूझ रहा है, क्योंकि गाम्बिया, उज्बेकिस्तान और अमेरिका में भी भारतीय दवाओं के कारण लोगों की जान जाने की खबरें आ चुकी हैं।