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रहस्य और रोमांच से भरा संसद सत्र

ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी की सरकार को रहस्य और रोमांच बहुत पसंद है। तभी सरकार अपने फैसले को, अपने एजेंडे को आखिरी समय तक रहस्य बना कर रखती है और एकदम से सबको चौंका देती है। सरकार का यह आचरण उसके अपने कामकाज में दिखता ही है संसद सत्र में भी दिखता है। अन्यथा कोई कारण नहीं था कि सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाए और उसका एजेंडा इतना गोपनीय रखे की किसी को उसकी जानकारी न हो। विपक्ष की ओर से बार बार सवाल उठाए जाने के बाद सरकार ने विशेष सत्र का एक एजेंडा बताया है लेकिन इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि विशेष सत्र उसी एजेंडे को पूरा करने के लिए बुलाया गया है, जो सरकार ने बताया है। 18 सितंबर से शुरू हो रहे सत्र में कुछ चौंकाने वाली चीज होगी।

सरकार कह रही है कि लोकतांत्रिक प्रणाली की 75 साल की यात्रा और इसकी उपलब्धियों पर चर्चा होगी और चार सामान्य विधेयक पास कराए जाएंगे, जिसमें एक विधेयक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़ा है। लेकिन असली एजेंडा कुछ और लगता है। वह क्या होगा यह किसी को पता नहीं है। पता नहीं सरकार में शामिल मंत्रियों और बड़े अधिकारियों को भी पता है या नहीं? लेकिन जो भी होगा चौंकाने वाला है। असल में सरकार ने पक्ष-विपक्ष और देश के नागरिकों को चौंकाते रहने का फैसला किया हुआ है।

याद करें कैसे संसद के पिछले यानी मानसून सत्र समाप्त होने से एक दिन पहले चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का बिल आ गया था। किसी को अंदाजा नहीं था कि सरकार यह बिल ले आएगी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी बनाई थी और कहा था कि जब तक कानून नहीं बनता है तब तक यह कमेटी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करेगी। सरकार नहीं चाहती है कि यह कमेटी नियुक्ति करे। तभी यह कानून लाया गया। लेकिन अगले साल फरवरी तक कोई नियुक्ति करने की नौबत ही नहीं आने वाली है। इसलिए अचानक मानसून सत्र के आखिर में बिल पेश करने की जरूरत नहीं थी। पर सरकार ने बिल पेश कर दिया और अब विशेष सत्र में उसे पास कराएगी।

इससे पहले कितने और मौकों पर संसद में सरकार ने सबको चौंकाया है। किसी को अंदाजा नहीं था कि सरकार आईपीसी, सीआरपीसी और इविडेंस एक्ट बदलने जा रही है। अचानक तीन बिल संसद में पेश किए गए और उसके बाद गृह मामलों की स्थायी समिति को भेज दिया गया। इससे पहले जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करने का काम भी सरकार ने अचानक किया था। 2019 के मानसून सत्र में एक दिन अचानक गृह मंत्री ने इसे सदन के सामने रख दिया। नागरिकता संशोधन कानून भी इसी तरह एक दिन अचानक संसद के सामने पेश हो गया था। इसलिए विशेष सत्र में किसी चौंकाने वाली घटना के लिए तैयार रहने की जरूरत है।

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