लोकसभा चुनाव में मेहनत से मिली विपक्ष को कामयाबी
रशीद किदवई
आम तौर पर ऐसा नहीं होता है कि कोई दल या गठबंधन सत्ता से वंचित रह जाए, फिर भी उसके खेमे में उल्लास हो। इसी तरह ऐसा भी नहीं होता कि कोई दल या गठबंधन जीत जाए या सरकार बनाने की स्थिति में हो, पर वह हताशा में दिखे। इस बार यही होता दिख रहा है।
लोकसभा चुनाव परिणाम दोनों पक्षों के लिए बहुत कुछ सीख लेने का अवसर है। सत्तारूढ़ दल ने 400 से अधिक सीटें लाने का दावा किया था, जिसे मीडिया के एक बड़े हिस्से ने भी खूब हवा दी थी। इसीलिए उस खेमे में निराशा का माहौल है। किसी भी पार्टी के लिए तीसरी बार लगातार चुनाव जीतना एक मुश्किल काम होता है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 का चुनाव आशा के आधार पर जीता था। अगले चुनाव में राष्ट्रवाद का भावनात्मक मुद्दा उठाया गया। इस बार इस तरह का कोई बड़ा मुद्दा नहीं था। मोदी का कोई विकल्प नहीं है, इस आधार पर भाजपा ने 2024 का चुनाव लड़ा। उनके भाषणों में भी नकारात्मकता दिखी और उन्होंने क्षत्रपों को किनारे करने का प्रयास भी किया। ऐसा इंदिरा गांधी के दौर में कांग्रेस भी करती थी, जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा। इस परिणाम से राहुल गांधी बड़े नेता के रूप में उभरे हैं, जिन्होंने अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाया है। विषम परिस्थितियों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ाना एक बड़ी उपलब्धि है। राहुल गांधी की दो यात्राओं तथा बेबाकी से मुद्दों को उठाने का लाभ कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को मिला है।
राजस्थान में कांग्रेस ने वापसी की है। अगर वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री होतीं, शायद ऐसे नतीजे नहीं आते। महाराष्ट्र में तोड़-फोड़ और अस्थिरता की जो राजनीति हुई, मुझे लगता है कि उसका संदेश अच्छा नहीं गया। भावनात्मक आधार पर विपक्षी गठबंधन को लोगों का समर्थन मिला। बंगाल में भी चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बनाया गया और जमीनी हकीकत से परे रह कर चुनाव लड़ा गया। उत्तर प्रदेश में भाजपा जातिगत समीकरण को इस बार साधने में विफल रही। राहुल गांधी को घेरने का प्रयास भी काम नहीं आया। वे केरल से चुनाव लड़ रहे थे। भाजपा ने बार-बार उन्हें अमेठी से चुनाव लड़ने की चुनौती दी। अमेठी में कांग्रेस कार्यकर्ता के हाथों हार होना एक बड़ा झटका है। राम मंदिर के मुद्दे पर विपक्ष को घेर कर राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास भी बहुत से मतदाताओं को रास नहीं आया। बहरहाल, इस परिणाम से राहुल गांधी बड़े नेता के रूप में उभरे हैं, जिन्होंने अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाया है। विषम परिस्थितियों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ाना एक बड़ी उपलब्धि है। राहुल गांधी की दो यात्राओं तथा बेबाकी से मुद्दों को उठाने का लाभ कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को मिला है।
कांग्रेस पहले भी चुनाव हारी है, पर उसका मनोबल नहीं टूटता था, लेकिन 2014 और 2019 में उसका मनोबल टूट गया था। ये परिणाम उसके लिए प्रभावी संजीवनी की तरह हैं। पूरे देश में एक नेता के तौर पर राहुल गांधी को स्वीकृति मिली है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और ममता बनर्जी ने शानदार उपस्थिति दर्ज की है। ममता बनर्जी ने पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में भाजपा के आक्रामक प्रचार को ध्वस्त किया है। अखिलेश यादव ने राज्य के जातिगत समीकरण को अच्छी तरह समझा और अनेक जातियों के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। बसपा के लिए इस चुनाव का संदेश यही है कि जनता अघोषित राजनीतिक सांठ-गांठ को पसंद नहीं करती है। आगे हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव होने हैं, जहां एनडीए गठबंधन को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।