मॉरिशस- भारत से हजारों किमी दूर एक भारत
अशोक शर्मा
मकर रेखा पर स्थित मॉरीशस को ‘हिंद महासागर का मोती’ कहा जाता है। प्रसिद्ध अमेरिकी साहित्यकार मार्क ट्वेन ने कहा था, ‘ईश्वर ने पहले यह देश बनाया और फिर उसमें से स्वर्ग की रचना की। ’ भारतीय मूल के सर शिवसागर रामगुलाम ने औपनिवेशिक शासन से मॉरीशस को आजादी दिलाने के प्रयासों की अगुआई की थी। आज भी वहां हिंदी और भोजपुरी का प्रचलन देखकर भारतीय मिट्टी की महक महसूस की जा सकती है। मॉरिशस से हाल ही में लौटा हूं।
वहां ‘अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी महोत्सव’ था, जिसका उद्घाटन मॉरिशस के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ और समापन राष्ट्रपति पृथ्वीराज सिंह रूपन ने किया। अस्सी साल की उम्र में विश्वभर से भोजपुरिया प्रतिनिधियों को इकट्ठा कर महोत्सव का सफलतापूर्वक आयोजन कर लेना डॉ सरिता बुधू जैसे कर्मठ भोजपुरी प्रेमी के ही बस की बात है। मॉरिशस सरकार के कला और संस्कृति विरासत मंत्रालय के तत्वावधान में छह से आठ मई तक हुए इस महोत्सव में सत्रह सत्रों में बंटे एकेडेमिक सत्र कई विद्वानों ने हिस्सा लिया तथा कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी।
अगला भोजपुरी महोत्सव गोरखपुर व बनारस में करने की घोषणा भी हुई
वर्ष 2019 में बनारस में हुए प्रवासी सम्मेलन में प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ ने इस महोत्सव के लिए घोषणा की थी, जो कोविड की वजह से टलते-टलते 2024 में संभव हो पाया। पहली बार किसी देश की सरकार ने भोजपुरी महोत्सव का आयोजन किया है। इससे पहले नवंबर 2014 में मैं मॉरिशस गया था। उस साल तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी गयी थीं। दो नवंबर को मॉरीशस में अप्रवासी दिवस मनाया जाता है क्योंकि करीब 190 साल पहले 1834 में इसी दिन एटलस नाम का जहाज भारतीय मजदूरों को लेकर मॉरिशस पहुंचा था।
इन लोगों में ज्यादातर लोग उत्तर प्रदेश और बिहार के थे, जिन्हें गिरमिटिया कहा जाता है
गिरमिट शब्द ‘एग्रीमेंट’ का बिगड़ा हुआ रूप है। भोजपुरी में अपने एक लेख मैंने लिखा था- ‘अंगरेजवा इहे नू कहले रहलs सन कि सोना मिली, त सोना लेखा अपना मेहरारू आ बाल-बच्चा के छोड़ के लोगबाग चल दीहल। अंगरेजवा इहो कहले रहलs सन कि गंगा सागर पार करे के बा आ हिंद महासागर हेला देलन स… अंगरेजवा गिरमिटिया लोग के तोड़s सन आ गिरमिटिया लोग पत्थर तूड़े। पत्थर सोना भइल आ मॉरिशस सोना के देश…धरती के स्वर्ग। ’
भारत और मॉरिशस के बीच सिर्फ हिंद महासागर की दूरी का अंतर है। करीब छह हजार किलोमीटर की दूरी, बाकी यहां के किसी गांव में चले जाइए, आपको लगेगा कि आप भारत के आरा, बलिया, छपरा या आजमगढ़ के किसी गांव में हैं। सिर्फ फ्रेंच या क्रियोल के शब्द कान में पड़ने से हम उनसे खुद को अलग नहीं कर सकते। मेरा जन्म बिहार के सिवान जिले में हुआ है, रेणुकूट, सोनभद्र (उत्तर प्रदेश) में पला-बढ़ा हूं, लेकिन मॉरिशस मुझे तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक या असम से ज्यादा अपना लगता है। क्योंकि हमारी भाषा एक है, संस्कृति और संस्कार एक हैं। भाषा भौगोलिक दूरी मिटा देती है। जगजाहिर है कि मॉरिशस की दो-तिहाई से भी ज्यादा आबादी भोजपुरी बोलती है।
मॉरिशस में सनातन है, इसलिए परंपरा बची हुई है, भारत बचा हुआ है। वैसे सच कहूं, तो मॉरिशस ईस्ट और वेस्ट यानी पूरब और पश्चिम का मिलन केंद्र है। यहां साड़ी में लिपटी महिला दिखती है, तो अत्याधुनिक लिबास में बिंदास युवती भी, और मजे की बात यह कि किसी से किसी को कोई दिक्कत नहीं है। सनातन, पूजा-पाठ, मंदिर, रामायण, महावीरी झंडा, हनुमान जी, रामजी, शिवजी मॉरिशस में रचे-बसे हैं। इसलिए भारतीय आचार्यों की यहां बहुत पूछ है, आदर है। यहां रामायण सेंटर है। इस बार की यात्रा में उत्तर प्रदेश के आचार्य राकेश पांडेय ने वहां सारे प्रतिनिधियों का स्वागत किया। वाराणसी निवासी आचार्य रवींद्र त्रिपाठी भी अपनी पत्नी अम्बिका त्रिपाठी के साथ स्वागत-सम्मान में खड़े मिले।
यहां गीत-गवाई अपने खांटी भोजपुरी तेवर में है
छोटे से इस टापू वाले देश में डेढ़ सौ से ज्यादा गीत-गवाई स्कूल है। गीत-गवाई संस्था को यूनेस्को ने मान्यता दी है और हेरिटेज सूची में शामिल किया है। मॉरिशस सरकार ने भोजपुरी को मान्यता दी है, भले वह भारत में उपेक्षित है और आठवीं अनुसूची में शामिल करने का संघर्ष जारी है। मॉरिशस के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भोजपुरी बोलते हैं, भोजपुरी कार्यक्रमों में रुचि लेते हैं और उद्घाटन एवं समापन करते हैं।
यही वजह है कि 190 साल के बाद भी ग्लोबलाइजेशन के दबाव और अवरोध के बाद भी मॉरिशस में हम अपनी जड़ों से जुड़े हैं और विरासत को बचा कर रखे हैं। लेकिन यह भी एक सच है कि ऐसे अनुष्ठान में सरिता बुधू जैसे लोगों को अपना पूरा जीवन देना पड़ता है।
अपने पुरखों के संघर्ष और उनकी विजय गाथा पर अपने एक गीत के अंश के साथ अपनी बात खत्म करता हूं- ‘हम तो मेहनत को ही हथियार बना लेते हैं/ अपना हंसता हुआ संसार बना लेते हैं/ मॉरिशस, फीजी, गुयाना कहीं भी देखो तुम/ हम जहां जाते हैं सरकार बना लेते हैं। ’
(ये लेखक के निजी विचार हैं। )