हरिद्वार। अतिवृष्टि और बाढ़ ने इस वर्ष हरिद्वार जिले को गहरे घाव दिए हैं। विकट हालात को संभालने में सरकारी मशीनरी को अब तक पसीना बहाना पड़ रहा है। जिले के कुल 111 गांव और कस्बे अतिवृष्टि व बाढ़ से प्रभावित हुए। लक्सर सहित जिले के तमाम इलाकों में अब भी जलभराव की स्थिति बनी हुई है। इससे फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है। खेतों में 53 हजार 883 हेक्टेअर गन्ना, धान सहित अन्य फसलें बर्बाद हुई।
सर्वे में अतिवृष्टि से बर्बाद हुई फसल की कुल लागत 38 करोड़ से अधिक की आंकी गई है। जिसमें गन्ना 45500 हेक्टेअर, औधानिक 481 और धान 7902 हेक्टेअर शामिल है। आपदा में बड़े-छोटे 28 पुलों को भारी क्षति पहुंची। जिले के 3894 परिवारों के 15 हजार से अधिक व्यक्तियों को अपना घर छोड़ना पड़ा।
भूधंसाव के कारण क्षतिग्रस्त हुए अन्नेकि-हेतमपुर पुल पर आवागमन आरंभ करने के लिए बेली ब्रिज बनाया जाना था पर, अब तक उसका निर्माण नहीं हो पाने के कारण करीब पचास हजार की आबादी को कई किमी का चक्कर काट या फिर से जान हथेली पर रख कर कीचड़ भरे मार्ग से होकर गुजरना पड़ रहा है। जबकि, अतिवृष्टि और बाढ़ आपदा में भीमगोड़ा बैराज का क्षतिग्रस्त हुआ गेट तो बदल दिया पर, बाकी गेट अब तक नहीं बदले जा सके। भीमगोड़ा बैराज उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के अधीन आता है, इस मामले में उप्र सिंचाई विभाग के एसडीओ शिवकुमार कौशिक का कहना है कि गेट नंबर 10 जो टूटा था, उसे बदला जा चुका है। बाकी आठ गेट और बदले जाने हैं, जिसकी प्रक्रिया चल रही है।
बाढ़ आपदा और अतिवृष्टि से लक्सर में कुल 24 पुल को नुकसान हुआ था, जबकि दो हजार 856 परिवारों के 11 हजार 424 लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए थे। इसी तरह हरिद्वार में 198 परिवारों के 792, रुड़की के 750 परिवारों के 3200 और भगवानपुर के 90 परिवारों के 380 लोगों को भी यह दंश झेलना पड़ा। लक्सर में फसलों को भी भार नुकसान पहुंचा था। अतिवृष्टि और बाढ़ आपदा में जिले का यही इलाका सबसे अधिक प्रभावित हुआ था और अब भी है। इससे सटे खानपुर क्षेत्र की भी यही स्थिति है।
इन क्षेत्रों में बाढ़ की विभीषिका इस कदर रही कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को स्थिति का आंकलन करने को दो-दो बार हरिद्वार का दौरा करना पड़ा। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री को जिले के प्रभारी मंत्री व सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज और कृषि मंत्री गणेश जोशी को भी हरिद्वार भेजना पड़ा। बावजूद क्षेत्र के तमाम किसान और ग्रामीणों की समस्या का समाधान अब तक नहीं हुआ।
हालांकि प्रशासन ने अपने स्तर पर बचाव और राहत कार्य में कहीं कोई कमी नहीं छोड़ी। कांवड़ मेला यात्रा के बीच आई इस मुसीबत से निपटने में प्रशासनिक अमला दिन-रात लगा रहा। विभिन्न धार्मिक और सामाजिक संगठनों का साथ लेकर राशन-पानी और भोजन इत्यादि की व्यवस्था करने के साथ ही प्रभावितों को सरकारी आर्थिक सहायता भी मुहैया कराई गई। पर, यह प्रभावितों को हुए नुकसान की पूर्ति नहीं कर सका है।