उत्तराखंड

लोकगायक को मिला पहला “नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान”

आईएएस रयाल लिखित पुस्तक ‘कल फिर सुबह होगी’ का लोकार्पण

नरेंद्र सिंह नेगी की 75वीं वर्षगांठ और रचनाधर्मिता के 50 साल बेमिसाल

देहरादून। उत्तराखंड के प्रख्यात लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी की 75वीं वर्षगांठ और रचनाधर्मिता की स्वर्ण जयंती के अवसर पर भव्य और गरिमामय समारोह हरिद्वार बाईपास स्थित संस्कृति विभाग के प्रेक्षागृह में आयोजित किया गया। इस समारोह में गढ़वाली के अप्रतिम कवि, लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी के 101 गीतों की साहित्यकार ललित मोहन रयाल द्वारा की गई मीमांसा की पुस्तक ‘कल फिर जब सुबह होगी’ का लोकार्पण किया गया।

पुस्तक का प्रकाशन मातृभाषा को समर्पित विनसर पब्लिशिंग कं. ने किया है। समारोह में लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी के नाम से शुरू किया गया प्रथम “नरेन्द्र सिंह नेगी संस्कृति सम्मान” मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा नरेंद्र सिंह नेगी को प्रदान किया गया। इस सम्मान में नेगी को दो लाख इक्यावन हजार रुपये की धनराशि तथा प्रशस्ति भेंट किया गया। समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि नरेन्द्र सिंह नेगी ने अपने गीतों के माध्यम से अपने लोक और गीतों को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान दी है। नेगी की एक और बड़ी खासियत यह है कि वे जितने संवेदनशील गायक हैं, वैसे हिमालय की तरह अडिग भी हैं। उनकी यह अडिगता उन्हें एक अलग पायदान पर खड़ा करती है। ललित मोहन रयाल को बधाई देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आपने एक महत्वपूर्ण कार्य साहित्य के क्षेत्र में नेगी के गीतों पर साहित्यिक समीक्षा कर किया है, यह प्रशंसनीय है।

इससे पूर्व वरिष्ठ पत्रकार मनु पंवार ने खतरा जताते हुए कहा कि आज हम जिस स्थिति में जी रहे हैं, उसमें यह खतरा दिख रहा है कि पहाड़ की सभ्यता, अपनी बोली, अपनी संस्कृति, अपनी पहचान खत्म हो जाएगी, वह एक तरह से डायनासोर हो जायेगी तो नेगी के गीत उस डायनासोर के जीवाश्म की तरह होंगे, जो हमें ये बताएंगे कि कभी यहां ऐसी बसासतें थीं, कभी ऐसी सभ्यता थी और ऐसा कल्चर था।
लोक साहित्य के अध्येता और शिक्षाविद शिवप्रसाद सेमवाल ने कहा कि नेगी के गीत सामाजिक सरोकारों से जुड़े हैं। उनमें वो प्रभावात्मकता है कि गढ़वाली भाषा न जानने वाला भी उस संगीत से प्रभावित होकर स्वयं को उससे जोड़ देता है। वे एक प्रसंग के माध्यम से बताते हैं कि किस तरह केरलवासी कृष्ण कुमार जो हिन्दी भाषा नहीं जानते थे, एक रात में अभ्यास करके नेगी का “झ्यूंतू तेरी जमादारी” गीत गाया था। उन्होंने कहा कि नेगी  के गीतों में जो स्तरीयता है, उसी स्तर पर जाकर रयाल ने उन गीतों की विवेचना की है। उनकी भाषा बहुत समृद्ध है।

मुख्य सचिव राधा रतूड़ी जिस आत्मीयता के साथ दर्शक दीर्घा में बैठी बुजुर्ग महिलाओं से मिली, वह उनकी सादगी व उच्च आदर्शो व पहाड़ के प्रति प्रेम उनके लोक व्यवहार में झलकता है। अपने उद्बोधन की शुरुआत मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने गढ़वाली से शुरू किया। उन्होंने कहा कि वह गढ़वाली को जितना समझ व थोड़ा थोड़ा बोल भी देती हैं, वह सब उन्होंने नेगी के गीतों से सीखा है। उन्होंने कहा कि उन्होंने गढ़वाली गीत गाना भी नेगी के गीतों से ही सीखा है। अपने उद्बोधन के अंत उन्होंने नेगी को समर्पित करते हुए ‘घुघुति घुरौण लागि म्यारा मैत की…” से समाप्त कर अपने अंदाज में लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी को जन्मदिन की शुभकामनायें दी।

उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी अनिल रतूड़ी ने नरेंद्र सिंह नेगी के रचनाकर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वह एक कवि, दार्शनिक, गायक और संगीतकार के रूप में स्थापित हैं। इसलिए आधी सदी में उन्होंने हिमालय- मध्य पहाड़ी भाषा में न केवल मधुर गीतों का सृजन किया बल्कि अनेक खोए हुए लोकगीतों और शब्दों को पुनर्जीवित करने का महत्वपूर्ण काम किया है। उन्होंने कहा कि ललित मोहन रयाल की इस पुस्तक में नरेंद्र सिंह नेगी के समग्र गीत संसार में से ऐसे 101 प्रतिनिधि गीतों को शामिल किया गया है जो उनके रचनात्मक विस्तार का प्रतिनिधित्व करते हैं।

प्रख्यात संस्कृतिकर्मी डा. नंदकिशोर हटवाल ने नेगी  की 50 वर्षों की गीत यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह समय के बड़े अंतराल में फैली हुई है, इनकी गीत यात्रा का साम्राज्य समाज की चार पीढ़ियों तक फैला हुआ है। उन्होंने कहा कि नेगी के गीतों की विषयवस्तु की दृष्टि से उत्तराखण्ड के जनजीवन का कोई पहलू ऐसा नहीं है जिसे उन्होंने छुआ न हो। दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने ललित मोहन रयाल की लोकार्पित पुस्तक “कल फिर जब सुबह होगी” से इतर लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी के आस -पास रची बसी उस रचनाधर्मिता व लोक समाज के ताने बाने को अलग ही अंदाज में उठाते हुए खूब तालियाँ बटोरी। उन्होंने कहा कि पौड़ी श्रीनगर में नेगी अपने चहेतों के मध्य “नरु दा” के रूप में जाने जाते हैं।

सुरेखा डंगवाल ने कहा कि उनके गायक में वह लोक समाया है जिसमें पहाड़ के वे सभी पुंज पुष्पित हो जाते हैं जिनका सम्मोहन हमें हमारी हर तरह के संघर्ष के साथ उस से पार पा लेने की जिजीविषा देते हैं। उन्होंने कहा कि नेगी ने हम महिलाओं को अपने शब्दों में जितना सम्मान दिया हम हमेशा उसके ऋणी रहेंगे।

इस अवसर पर नरेन्द्र सिंह नेगी ने कहा कि ललित मोहन रयाल ने गीतों के वे शब्द और पंक्तियां उठायी जिन पर अधिकतर लोग ध्यान नहीं देते हैं। रयाल ने गीतों के ऐसे प्रसंग उठाकर लोक प्रसंगों को जोड़ते हुए नया आयाम दिया है। उन्होंने गीतों को खण्डों में विभाजित करके पढ़ने वालों को एक और सुविधा प्रदान की है। नेगी ने बंजर हो रहे गांवों की पीड़ा का गीत प्रस्तुत किया। मुख्यमंत्री द्वारा “ठंडो रे ठंडो” गीत की फरमाइश किये जाने पर यह गीत भी दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन गढ़वाली के सशक्त हस्ताक्षर गणेश खुगशाल गणी ने किया।

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