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स्कूल की चारदिवारी में मासूम का शोषण

अजय दीक्षित
हैरत की बात है कि स्कूलों में बच्चे सुरक्षित नहीं हैं, मगर इसे लेकर कहीं कोई बात नहीं होती। उनके साथ और जो कुछ हो रहा है, उसको तो जाने ही दें। पर स्कूल की चारदिवारी में मासूमों के शोषण को लेकर लगातार लापरवाही बरती जाती है। अयोध्या के नामी स्कूल सनबीम की छात्रा के साथ हुई दरिंदगी पर गजब की चुप्पी बनी रही। पंद्रह साल की इस बच्ची का स्कूल बिल्डिंग से गिरते हुए वीडियो वायरल हुआ। स्कूल ने शुरुआत में पिता को फोन कर कहा वह झूले से गिरने के कारण चुटहिल हो गई है । पोस्टमार्टम से खुलासा हुआ, उसका गैंग रेप हुआ था। परिवार के अनुसार, प्राचार्या रश्मि भाटिया ने छात्रा को फोन करके स्कूल बुलाया था। स्कूल प्रबंधक बृजेश यादव व खेल टीचर अभिषेक कनौजिया ने बलात्कार किया। उधर हैदराबाद के नालगोंडा जिले की 16 साल की छात्रा के मित्र ने अपने दो अन्य साथियों के साथ मिल कर रेप किया। इससे कुछ ही रोज पहले कौशांबी जिले में तेरह साल की छात्रा का स्कूल से लौटते हुए रेप किया गया। दो हफ्ते पहले ग्रेटर नोएडा की शिव नाडार यूनिवर्सिटी में अनुज ने अपनी दोस्त स्नेहा की गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली। अप्रैल मध्य में मुजफ्फरपुर जिले के स्कूल में तीन साल की बच्ची का दस साल के लडक़े ने वलात्कार किया।

दस साल का बच्चा भी बलात्कारी हो सकता है, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह मामला सिर्फ दिल दहलाऊ नहीं है। बल्कि इसे खतरे की घण्टी मान लेना चाहिए। इसी माह महाराष्ट्र स्कूल के में नागपुर टीचर ने बारह साल की छात्रा का रेप किया। इससे कुछ ही समय पूर्व दिल्ली में जौनपुर के अजय कुमार ने पांचवीं क्लास की बच्ची का रेप किया। यह स्कूल एमसीडी का है, आरोपी 54 साल का । ये इनी-गिनी घटनाएं महीने – दो महीने की ही हैं। जिन पर कहीं कोई बवेला नहीं हुआ। किसी का खून नहीं खौला । दरिंदगी आलम यह है कि हर रोज अखबारों के पन्नों में प्रकाशित होने वाली ये अनचाही खबरें छोटी सी जगह लेती हैं। इन्हें नजरखेंचूं तभी बनाया जाता है, जब घटना में खास तरह की दरिंदगी शामिल हो । सार्वजनिक जगहों, पास-पड़ोस में तो बलात्कार हो ही रहे हैं। उनके अलावा स्कूलों व कॉलेज परिसर में सुरक्षा न के बराबर है। खासकर छोटे बच्चों के स्कूलों के भीतर सुरक्षा व्यवस्था के लिए वे जिम्मेदार क्यों नहीं हैं। वह भी तब, जबकि खुद स्कूल प्रबंधन व कर्मचारी उसमें लिप्त हों।

मासूम बच्चों के साथ होने वाली छेड़छाड़, व्यभिचार व इधर-उधर हाथ लगाने, सहलाने, गलत तरीके से पकडऩे वाली ढेरों घटनाओं का तो कभी अंदाजा भी नहीं लगाया जाता। जबकि खुद को सुरक्षित रखने के गुर स्कूलों में ही सिखाने चाहिए। घर या बाहर तो मां-बाप सतर्कता वरतते हैं। बल्कि कई दफा वे अपने मासूम बच्चे की सुरक्षा की फिक्र में खुद ही मानसिक तौर पर बीमार हो जाते हैं। जिन्हें हैलीकापटर मॉम कह कर उपहास तक किया जाता है। इन या इस तरह के किसी भी मामले में आरोपी को स्कूल से निलंबित करने की खानापूर्ति कर दी जायेगी। कुछ समय तक मामले को ढंकने- मूंद का काम चलेगा। मगर इन्हें मूल रूप से नैतिक जिम्मेदार कब बनाये जायेगा। जब हम अपने मासूम बच्चे को स्कूल के विशाल व मजबूत नजर आने वाले गेट के भीतर छोड़ते हैं। उसके बाद हमें पता भी नहीं चलता कि भीतर उसके साथ क्या घट रहा है। उसी स्कूल के भीतर जाने के लिए इतनी खानापूर्ति करनी होती है कि सिर चकरा जाये। बच्चों के प्रति शिक्षण संस्थानों को जिम्मेदार बनाना ही होगा। यह कह कर संस्थान नहीं बच सकते कि उनका कर्मचारी या शिक्षक ही दोषी है। खासकर बहुत छोटे बच्चों के इर्द-गिर्द सिर्फ महिलाओं को ही काम पर लगाया जाना चाहिये।

बच्चा ज्यों-ज्यों समझदार होता जाता है, उसे स्टेप वाइज गुड टच बैड टच का पाठ रटाया जाये । उसे बार- बार, चित्रों, फिल्मों, खिलौनों व आकृतियों द्वारा समझाया जाये । गोपन अंगों के बारे में बताएं। उन्हें विरोध करना और मां-बाप को ऐसी बातें बताने के लिए सहज होना सिखाना होगा। भयभीत रहने से या बच्चों को डराने से गलीज सोच रखने वालों को नहीं रोका जा सकता । व्यभिचारी या बलात्कारी की मंशा कभी न कभी झलकती है। इस पर परिवार व स्कूल दोनों को पैनी नजर रखनी चाहिये। किशोरवय में जाने वाले बच्चों को हैंडल करना तनिक दुष्कर है। उन्हें सेक्स एजुकेशन दी जाये। उनकी उत्सुकताओं, सवालों और तर्क को बेहद संतुलित ढंग से पूरा करना चाहिये । इन्टरनेट के इस दौर में सेक्स और जिस्मानी सम्बन्धों को ढांपने के प्रयास फिजूल हैं। सिर्फ कराटे सिखाने और विपरीतलिंगी से दूरी बनाये रखने के पाठों से काम नहीं बनना । परम्पराओं व दकियानूसी विचार को परे करके व्यावहारिक तौर पर चेतना होगा ।

खासकर लडक़ों को नयी सीख दी जाए। उन्हें बताया जाये स्त्री देह के प्रति जुगुप्सा या उसे जबरन हथियाने के नतीजे कितने खौफनाक हो सकते हैं। छेड़छाड़, व्यभिचार व रेप पर लगने वाली धाराएं व सजाएं भी बताई जाएं। लड़कियों से दोस्ती के मायने यह कतई नहीं है कि वह कब्जाई गयी वस्तु हो गयी । प्रेमिका को मारना, बदले की भावना से उस पर प्रहार, एसिड फेंकना, अपने ही प्रेम संबंध के क्षणों को सार्वजनिक प्लेटफार्मों पर डालना या डालने की धमकी देकर ब्लैकमेल करने वाले पुरुषों को सीख देनी जरूरी है। को-एड में पढने का मतलब एक-दूसरे को बेहतरी से जानना है। दुश्मनी गांठना नहीं। संबंध हमेशा सहमति से बनते हैं। कोई भी रिश्ता जबरन थोपा नहीं जा सकता।

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