कांग्रेस और आप में सीट बंटवारे की चर्चा
दिल्ली के सेवा बिल पर चर्चा के दौरान राज्यसभा में भाजपा की डॉक्टर सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की नई बनी दोस्ती को लेकर कांग्रेस पर तंज करते हुए कहा, ‘गुजरात में आपका वोट हाफ कर दिया, पंजाब में स्विच ऑफ कर दिया, दिल्ली में साफ कर दिया और आपने उनको माफ कर दिया’। सवाल है कि क्या सचमुच कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को माफ कर दिया है? जिस तरह से कांग्रेस नेताओं ने संसद के दोनों सदनों में दिल्ली के बिल पर आप का साथ दिया और उसके बाद केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े और राहुल गांधी को चि_ी लिख कर आभार जताया उसके बाद कोई संदेह नहीं बचा है।
तभी अब चर्चा है कि दोनों पार्टियों के बीच सीट बंटवारे की बात हो रही है, जिसका दिल्ली और पंजाब के कांग्रेस नेता कई तरह से विरोध कर रहे हैं। पंजाब में तो यहां तक कहा जा रहा है कि कांग्रेस सरकार में शामिल हो सकती है। हालांकि इन खबरों का खंडन करते हुए प्रदेश अध्यक्ष राजा अमरिंदर सिंह वडिंग ने कहा कि अगर ऐसा किसी हाल में नहीं होगा और अगर होगा तो वे इस्तीफा दे देंगे। ध्यान रहे पंजाब की 117 सदस्यों की विधानसभा में आप के 92 विधायक हैं। कांग्रेस मुख्य विपक्षी है, जिसके 18 विधायक हैं। अगर कांग्रेस सरकार में शामिल होती है तो उसके बाद अकाली दल, भाजपा, बसपा और एक निर्दलीय की कुल संख्या सात रह जाएगी। यानी कोई विपक्ष नहीं बचेगा।
जानकार सूत्रों के मुताबिक पंजाब की 13 लोकसभा सीटों को लेकर कांग्रेस और आप के बीच बात हो रही है। इस समय आप का सिर्फ एक सांसद है, जबकि कांग्रेस का सात है। कांग्रेस ने पिछली बार आठ सीटें जीती थीं लेकिन जालंधर के सांसद संतोष चौधरी के निधन के बाद वहां हुए उपचुनाव में आप जीत गई। बाकी पांच में से एक संगरूर सीट सिमरनजीत सिंह मान ने जीती है और भाजपा व अकाली दल के पास दो-दो सीटें हैं। बताया जा रहा है कि आप ज्यादा सीटों की मांग कर रही है। कांग्रेस कम से कम सात सीट चाहती है। अगर कांग्रेस और आप का गठबंधन बनता है तो दूसरी ओर अकाली और भाजपा का भी गठबंधन बनेगा। यानी पिछले दो चुनावों से उलट इस बार आमने-सामने का चुनाव हो सकता है।
दिल्ली के बारे में कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी पांच सीटों पर लडऩा चाहती है और कांग्रेस को दो सीट दे सकती है। कांग्रेस के तमाम बड़े नेता इसका विरोध कर रहे हैं। अजय माकन और संदीप चौधरी ने मोर्चा खोला है। दूसरी ओर तालमेल का समर्थन करने वालों का कहना है कि इन दोनों को अपनी लोकसभा सीट की चिंता है। कांग्रेस के कई नेता पिछले 10 साल से सत्ता से बाहर होने की वजह से परेशान हैं और लगता है कि तालमेल हो गया तो उनको कोई न कोई पद मिल जाएगा। या विधानसभा चुनाव में जीतने की संभावना बनेगी। आप को भी लग रहा है कि मुस्लिम वोट का रूझान कांग्रेस की ओर हुआ है इसलिए तालमेल जरूरी है नहीं तो अगले चुनावों में दिक्कत होगी।