blog

सरकारी दावों के विपरीत

अगर आम जन की वास्तविक आय नहीं बढ़ती है, तो उनका उपभोग घटता है, जिसका असर बाजार में मांग पर पड़ता है और अंतत: यह स्थिति कारोबार जगत को प्रभावित करती है। अब ऐसा होने के साफ संकेत मिल रहे हैं। भारत में आर्थिक वृद्धि दर के लाभ आम जन तक नहीं पहुंच रहे हैं, इस बारे में तो पहले से पर्याप्त आंकड़े मौजूद रहे हैं। लेकिन अब व्यापार जगत का कारोबार भी मद्धम हो चला है, यह रोज-ब-रोज जाहिर हो रहा है। वैसे देखा जाए, तो इन दोनों परिघटनाओं में सीधा संबंध है। अगर आम जन की वास्तविक आय नहीं बढ़ती है, तो उनका उपभोग घटता है, जिसका असर बाजार में मांग पर पड़ता है और अंतत: यह स्थिति कारोबार जगत को प्रभावित करती है।

अब ऐसा होने के साफ संकेत मिल रहे हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट- अहमदाबाद की ताजा बिजनेस इन्फ्लेशन एक्सपेक्टेशन सर्वे (बीआईईएस) रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय कंपनियों की बिक्री और मुनाफे की स्थिति मद्धम बनी हुई है। सर्वे में शामिल 56 फीसदी कंपनियों ने बताया कि बीते सितंबर में उनकी बिक्री सामान्य से काफी कम अथवा कुछ कम रही। अगस्त में ऐसा कहने वाली कंपनियों की संख्या 52 प्रतिशत थी। इसी तरह आगे बिक्री सामान्य या सामान्य से अधिक होने की आशा रखने वाली कंपनियों की संख्या में अगस्त की तुलना में तीन प्रतिशत की गिरावट देखी गई।

यह स्थिति तब है, जब कंपनियों पर लागत में वृद्धि का दबाव नहीं बढ़ रहा है। जाहिर है, कंपनियों की बिक्री इसलिए नहीं बढ़ रही है, क्योंकि उपभोक्ताओं की क्रय-शक्ति घटती चली गई है। इस ट्रेंड की पुष्टि एक बिजनेस अखबार की एक रिपोर्ट से भी होती है, जिसमें बताया गया है कि पिछली दो तिमाहियों में कॉरपोरेट सेक्टर के मुनाफे में भारी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन बिक्री से होने वाली उन कंपनियों की आय घट गई है। स्पष्टत: यह मुनाफा शेयर बाजार से हुआ है। यानी अब शेयर बाजार का एक अलग गतिशास्त्र बन गया है, जिसका परंपरागत अर्थ में जिसे अर्थव्यवस्था समझा जाता है, उससे संबंध बेहद कमजोर हो चुका है।

तो बात घूम-फिर कर सरकारी दावों पर आ जाती है, जिनमें देश की माली हालत की खुशनुमा तस्वीर पेश करने के रोज नए तर्क ढूंढे जाते हैँ। जबकि यह रोज अधिक स्पष्ट होता जा रहा है कि असल अर्थव्यवस्था उन दावों की विपरीत दिशा में जा रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *