blog

कनाडा का फंसा कांटा

पहले एंटनी ब्लिंकेन और फिर जस्टिन ट्रुडो के बयानों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि निज्जर हत्याकांड का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है, भले इस बीच फिलस्तीन-इजराइल युद्ध छिड़ जाने से यह सुर्खियों से हट गया हो। दिवाली के दिन कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने भारत की दुखती रग को फिर से छेड़ा। उन्होंने आरोप दोहराया कि नई दिल्ली स्थित कनाडा के राजनयिकों के कूटनीतिक अभयदान को रद्द कर भारत ने वियना संधि का उल्लंघन किया। खालिस्तानी कार्यकर्ता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ होने का आरोप दोहराते हुए उन्होंने कहा कि बड़े देश अगर इस तरह “अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन” करें, तो सारी दुनिया सबके लिए अधिक खतरनाक जगह बन जाती है। इसके ठीक पहले पिछले हफ्ते भारत और अमेरिका के बीच 2+2 वार्ता के लिए आए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने नई दिल्ली में पत्रकारों से कहा था कि उन्होंने भारत को निज्जर हत्याकांड के बारे में कनाडा में चल रही जांच में सहयोग करने को कहा है। इस बयान का सीधा मतलब है कि अमेरिका अपनी इस राय पर कायम है कि कनाडा के पास निज्जर की हत्या में भारत के हाथ के बारे में विश्वसनीय सबूत हैं और वहां चल रही जांच सही दिशा में है।

इन दो बयानों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि निज्जर हत्याकांड का मामला ठंडा नहीं हुआ है, भले इस बीच फिलस्तीन-इजराइल युद्ध छिड़ जाने से यह सुर्खियों से हट गया हो। भारत के नजरिए यह मामला इसलिए बेहद अहम है, क्योंकि पिछले साढ़े तीन दशक में सभी सरकारों और खासकर मोदी सरकार की नीति भारत को अमेरिकी धुरी के करीब ले जाने की रही है। चीन की बढ़ती चुनौती के बीच हाल के वर्षों में अमेरिका ने भी भारत से अपने रिश्तों को खास तरजीह दी। इसके बावजूद निज्जर मामले में उसने भारत के रुख को स्वीकार नहीं किया है। हालांकि चीन संबंधी चिंता इतनी बड़ी है कि भारत में अपने रणनीतिक निवेश को वह झटके से खत्म करने की स्थिति में नहीं है, फिर भी इस विवाद ने पश्चिम के साथ आगे बढ़ रहे रिश्तों में एक अवरोध जरूर खड़ा कर दिया है। अब यह भारत को तय करना है कि उसकी निगाह में अमेरिकी धुरी से जुडऩे में किए अपने रणनीतिक निवेश को बचाना महत्त्वपूर्ण है, या एक साथ सभी धुरियों को चुनौती देते हुए आगे बढऩा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *