नीतीश को बड़ी मेहनत करनी होगी
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सभी विपक्षी पार्टियों की बैठक कराने का जिम्मा ले तो लिया लेकिन यह काम उनके लिए आसान नहीं होगा। पटना में 12 जून को विपक्षी पार्टियों की बैठक होने वाली है लेकिन अभी तक की स्थिति को देख कर लग रहा है कि कई बड़े विपक्षी नेता इस बैठक में शामिल नहीं होंगे। नीतीश के प्रयास का समर्थन करने के बावजूद संभव है कि बड़े विपक्षी नेता खुद जाने की बजाय अपनी पार्टी के किसी प्रतिनिधि को भेजें। अगर ऐसा होता है तो नीतीश के सब किए धरे पर पानी फिरेगा और विपक्षी एकता बनाने की संभावना पर भी असर होगा।
असल में यह पहला मौका है, जब एकजुटता बनाने के मकसद से विपक्षी पार्टियों की बैठक हो रही है। इससे पहले किसी न किसी कार्यक्रम में विपक्षी नेताओं को बुलाया जाता था। जैसे एमके स्टालिन 70 साल के हुए तो इस मौके पर मार्च में उनकी पार्टी ने एक कार्यक्रम किया, जिसमें विपक्षी नेता शामिल हुए।
इसी तरह पिछले महीने कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री के शपथ समारोह में कांग्रेस के बुलावे पर कई विपक्षी नेता जुटे। ऐसे ही कभी करुणानिधि के सम्मान में तो कभी देवीलाल के सम्मान में हुए कार्यक्रमों में विपक्षी नेताओं का जमावड़ा होता रहा। पहली बार ऐसा हो रहा है कि अगले लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने के लिए विपक्षी पार्टियों की बैठक होनी है। सो, यह नीतीश कुमार के लिए प्रतिष्ठा का मामला बन गया है। अगर सभी बड़े विपक्षी नेता उनके बुलावे पर पटना पहुंचते हैं तो नीतीश का कद बढ़ेगा। लेकिन अगर बड़े नेता नहीं शामिल हुए तो उनकी बड़ी किरकिरी होगी। उनको दोतरफा नुकसान होगा। एक तो देश भर में विपक्ष की राजनीति का चेहरा बनने की उनकी इच्छा को ग्रहण लगेगा तो दूसरे बिहार की राजनीति में सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल और मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा की नजर में भी वे हलके होंगे। इसलिए उनको और उनकी पार्टी को बड़ी मेहनत करनी होगी, ताकि बड़े नेता जुटें।